
आर्य समाज की स्थापना सन 1875 ई में महर्षि दयानंद सरस्वती ने की । सामाजिक क्षेत्र में दयानंद सरस्वती ने वर्ग तथा जाति व्यवस्था का बहिष्कार किया स्त्री शिक्षा पर विशेष बल दिया तथा स्त्री और पुरुषों को 'समान महत्व दिया इन्होंने विवाह के लिए लड़की की उम्र 16 वर्ष तथा लड़की की उम्र 25 वर्ष बतलाएं इनके द्वारा "दयानंद एंग्लो वैदिक कॉलेज" की स्थापना की की गई ।
आर्य समाज द्वारा कुछ शैक्षणिक और साहित्यिक सुधार भी किए गए और शायद सुधार भी किए इन्होंने संस्कृत में अनेक रचनाओं के साथ साथ हिंदी में उसका अनुवाद कर साहित्य में इनकी सेवा की आश्रम व्यवस्था के महत्व को भी इन्होंने जगाया ।
इनकी मृत्यु के पश्चात आर्य समाज दो वर्गों में विभक्त हो गया एक वर्ग लाला हंसराज पश्चिमी शिक्षा के समर्थक थे इनके द्वारा विभिन्न नगरों में D.A.V नामक शैक्षणिक संस्थाए खोली गई दूसरे वर्ग समर्थक महात्मा मुंशीराम थे जो प्राचीन भारतीय पद्धति को महत्व देते थे
इनके द्वारा पौराणिक धर्म का खंडन किया गया उन्होंने वैदिक धर्म का पक्ष लिया सत्यार्थ प्रकाश में आर्य समाज की प्रसिद्ध पुस्तक में धार्मिक विचारों का उल्लेख किया गया है इन्होंने संप्रदाय,मूर्ति ,पूजा , जात पात देव पूजा आदि को व्यर्थ माना इन्होंने निर्गुण और निराकार ईश्वर की पूजा पर बल दिया इन्होंने इस्लाम तथा ईसाई की पोप लीलाओं का खंडन कर एकीश्वरवाद को माना इनके द्वारा मनुष्य की मुक्ति सत्कर्मों ,ईश्वर की उपासना और ब्रह्मचर्य वक्त के द्वारा हो सकती है।
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