
बेसल I इसके तहत समूचा ध्यान ऋण जोखिमों पर दिया जाता है इसकी शुरुआत 1988 की गई भारत द्वारा इसे 1999 मैं अपनाया गया ।
बेसल II वर्ष 2004 के दिशा-निर्देश को प्रकाशित किया गया 3 मापदंड इस प्रकार है ।
(1)बैंक जोखिम परिसंपत्तियों का 9 परसेंट पूंजी पर्याप्तता अनुपात के न्यूनतम के रूप में बनाए रखेंगे ।
(2)बैंकों द्वारा बेहतर जोखिम प्रबंधन तकनीक का विकास ।
(3)बैंकों को जोखिम में विवरण को केंद्रीय बैंक के सामने रखना आवश्यक ।
बेसल III यह दिशा निर्देश 2010 में लागू किए गए इसके अंतर्गत महत्वपूर्ण बैंकिंग मापदंड जैसे पूंजी, तरलता, लाभ कमाने एवं निधियन पर ज्यादा ध्यान देना तथा बैंकिंग प्रणाली को और अधिक लोचदार बनाना शामिल है आरबीआई ने 2014 में भारतीय बैंकों में बेसल 3 की मानकों की समय सीमा को बढ़ाकर 31 मार्च 2019 कर दिया है ।
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