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Wednesday, May 6, 2020

मॉब लिंचिग(Mob Lynching)

मॉब लिंचिग(Mob Lynching):-----

■मॉब लिंचिंग 'सामूहिक नफ़रत' से जुड़ा एक ऐसा अपराध है जिसमें एक भीड़ क़ानून के दायरे से बाहर जाकर, महज़ शक के आधार पर, किसी तथाकथित 'अपराधी' को सजा दे देती है।
दरअसल, मॉब लिंचिंग 'पहचान की राजनीति' का एक परिणाम है जिसमें कोई एक समूह या कौम किसी दूसरे कौम पर अपना प्रभुत्व थोपने की कोशिश करती है।ऐसे घटनाओं में भीड़ बहुसंख्यक लोकतंत्र के एक हिस्से के तौर पर दिखती है जहां वह ख़ुद ही क़ानून का काम करती है, खाने से लेकर पहनने तक सब पर अपना नियंत्रण जताना चाहती है।
मॉब लिंचिंग की ऐतिहासिकता----
मॉब लिंचिंग दरअसल आज से नहीं बल्कि सैकड़ों सालों से किसी न किसी रूप में हो रही है। शरुआत में, लिंचिंग जैसे जघन्य अपराध अमेरिका में देखने को मिलते थे। एक वक़्त था जब अमेरिका में नस्ल-भेद की समस्या अपने चरम पर थी। उस दौरान, यदि कोई 'गैर-श्वेत' अपराध करता था तो उसे सार्वजनिक रूप से फांसी दी जाती थी। वहां के 'श्वेत' लोगों का मानना था कि इसके ज़रिये वे 'पीड़ित' को न्याय देने का काम कर रहे हैं।
क्यों हो रही हैं ऐसी घटनाएँ?
1.नफ़रत की राजनीति: नफ़रत की राजनीति हिंसात्मक भीड़ की एक बड़ी वजह है। 'भीड़तंत्र' तो वोट बैंक के लिये प्रायोजित हिंसा या धर्म के नाम पर करवाई गई हिंसा का एक जरिया है।
2.तमाम समुदायों के बीच आपसी अविश्वास: बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक समुदाय के बीच अविश्वास बढ़ता जा रहा है। एक कौम के लोग दूसरे कौम को शक के निगाह से देख रहे हैं। और फिर मौका मिलने पर वे एक-दूसरे से बदला लेने के लिये भीड़ को उकसाते हैं। सरकारी तंत्र की विफलता ऐसी घटनाओं में आग में घी का काम करता है।
3.समाज में व्याप्त गुस्सा: लोगों के मन में शासन व्यवस्था, न्याय व्यवस्था या फिर सुरक्षा को लेकर गुस्सा हो सकता है। ये गुस्सा भी इन घटनाओं को किसी न किसी रूप में बढ़ावा दे रहा है। जो कि बाद में उन्मादी भीड़ के ज़रिये देखने को मिलता है।
4.अफवाह और जागरूकता की कमी: अफ़वाह और जागरूकता की कमी के चलते 'लिंचिंग' की जो घटनाएं हुईं उनमें भीड़ का अलग ही रूप देखने को मिलता है। इसमें भीड़ के गुस्से के पीछे एक गहरी चिंता भी दिखाई देती है। बच्चे चोरी होना किसी के लिए भी बहुत बड़ा डर है। यहां हिंसा ताक़त से नहीं बल्कि घबराहट से जन्म लेती है।
5.तकनीक का दुरुपयोग: इस तरह की 'भीड़तंत्र' में सोशल मीडिया का दुरुपयोग एक बड़ा कारक है। देशभर के अलग-अलग हिस्सों से सामने आ रहे मॉब लिंचिंग के मामले बताते हैं कि वॉट्सएप इसकी सबसे बड़ी वजह रहा है।
6.स्थानांतरण एक बड़ी समस्या: अक्सर आर्थिक ज़रूरतों के कारण लोग एक इलाके से दूसरे इलाकों में आकर बसने लगते हैं। इन लोगों को रहने की जगह तो मिल जाती है, लेकिन उन पर लोगों को विश्वास नहीं हो पाता। तमिलनाडु में इस तरह की कुछ घटनाएं देखने को मिली थीं।

भारत में तेल भंडारण क्षमता (oil storage capacity of india)

भारत में तेल भंडारण क्षमता

भारत दुनिया में ऊर्जा का तीसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता तथा तेल का तीसरा बड़ा आयातक है (वर्ष 2018), अत: भारत तेल की कीमतों में होने वाले उतार-चढ़ाव से बहुत अधिक प्रभावित होता है।
■रणनीतिक/सामरिक पेट्रोलियम भंडार:
सामरिक पेट्रोलियम भंडार कच्चे तेल से संबंधित किसी भी संकट जैसे प्राकृतिक आपदाओं, युद्ध या अन्य आपदाओं के दौरान आपूर्ति में व्यवधान से निपटने के लिये कच्चे तेल के विशाल भंडार होते हैं।
■भारत के सामरिक पेट्रोलियम भंडार:---
भारत के सामरिक कच्चे तेल के भंडार वर्तमान में विशाखापत्तनम (आंध्र प्रदेश), मंगलौर (कर्नाटक) और पाडुर (कर्नाटक) में स्थित हैं। इनके अलावा सरकार ने चंदीखोल (ओडिशा) और पादुर (कर्नाटक) में दो अतिरिक्त सुविधाएँ स्थापित करने की घोषणा की थी।
SPR की भंडारण क्षमता:
वर्तमान में भारत आपातकालीन आवश्यकताओं के लिये तेल भंडारण करता है। वर्तमान में ‘सामरिक पेट्रोलियम भंडार कार्यक्रम’ (Strategic Petroleum Reserves programme- SPRP) के तहत भारत 87 दिनों तक आवश्यकता पूर्ति की भंडारण क्षमता रखता है। इसमें से लगभग 65 दिनों की आवश्यकता पूर्ति को तेल प्रसंस्करण इकाइयाँ जबकि शेष भंडार ‘भारतीय सामरिक पेट्रोलियम भंडार लिमिटेड’ (Indian Strategic Petroleum Reserves Limited- ISPRL) द्वारा बनाए गए भूमिगत भंडार के रूप में अनुरक्षित किया जाता है। भूमिगत भंडार की वर्तमान क्षमता 10 दिनों के तेल आयात के बराबर है।
■■भारत में तेल भंडारण से जुड़ी समस्याएँ:■■
■पारदर्शिता का अभाव:तेल भंडार में पारदर्शिता के अभाव के कारण तेल को समय पर उपयोग करने में अनेक अड़चनें हैं जिससे SPR तेल की कीमत सामान्यत: बहुत अधिक रहती है।
■■■ वास्तव में निजी रिफाइनरियों के पास
पर्याप्त ‘सामरिक पेट्रोल भंडार’ होते हैं
परंतु इनके द्वारा यह भंडारण किस रूप में
(क्रूड या रिफाइंड) तथा कहाँ किया जाता
है, इस संबंध में पूरी तरह पारदर्शिता का
अभाव रहता है।
■■दूसरा मुद्दा रिफाइनरी की धारिता से
संबंधित है। भारत में SPR तेल
रिफाइनरियों, केंद्र सरकार, राज्य सरकारों
के नियंत्रण में है। हालाँकि स्टॉक रखने
वाली अधिकांश रिफाइनरी सार्वजनिक
रूप से स्वामित्व वाली कंपनियां हैं।
■■समाधान की दिशा में कदम:■■
■पारदर्शिता में वृद्धि:भारत के अन्य रणनीतिक भंडार (यथा विदेशी मुद्रा भंडार) जिसमें स्पष्ट प्रक्रियाओं, प्रोटोकॉल तथा आँकड़ों को जारी करने की आवश्यकता होती है, उसी SPR भंडारण के लिये भी स्पष्ट सार्वजनिक तथा संसदीय जाँच की आवश्यकता होनी चाहिये।
SPR संबंधी सूचना के बारे में गोपनीयता के बजाय इसे समय पर और विश्वसनीय रूप से उपलब्धता सुनिश्चित करनी चाहिये।
■गतिशीलता में वृद्धि:SPR पर अलग-अलग इकाइयों का नियंत्रण होने के कारण, इन तेल भंडारों को समय पर उपयोग करने में बाधा उत्पन्न होती है इससे तेल की गतिशीलता प्रक्रिया काफी अस्पष्टता तथा जटिल बन जाती है। अत: SPR के संबंध में विभिन्न इकाइयों की भूमिका और प्रक्रिया में स्पष्टता होनी चाहिये।
■विविधता में वृद्धि:आपात स्थितियों में जोखिमों को कम करने के लिये भारत को अपने SPR धारिता में विविधता लानी चाहिये। यह विविधता भौगोलिक स्थान (तेल घरेलू या विदेश में भंडारण), भंडारण स्थान (भूमिगत या अधितल) और उत्पाद के स्वरूप (क्रूड ऑयल या परिष्कृत ऑयल) पर आधारित हो सकती है।
■विदेश में भंडारण:भारत तेल भंडारण के लिये ओमान जैसे देशों में सामरिक तेल भंडार स्थापित कर सकता है, ओमान की विशेष अवस्थिति के कारण होर्मुज़ जलडमरूमध्य की संभावित अड़चनों से भी बचा जा सकता है। हालाँकि इन स्थानों के साथ भू-राजनीतिक जोखिमों हो सकते है, अत: न्यूनतम तेल भंडार देश से बाहर स्थापित करने चाहिये।
■स्वामित्त्व में विविधता:स्वामित्त्व में विविधता भी एक महत्त्वपूर्ण कदम हो सकता है। यह सार्वजनिक ISPRL के माध्यम से या निजी तेल कंपनियों के माध्यम से अथवा विदेशी कंपनियों के स्वामित्त्व में हो सकता है।
ऊर्जा भारत की वृद्धि की दृष्टि से हमेशा महत्त्वपूर्ण रहा है तथा भविष्य में प्रभावित करता रहेगा। तेल की कीमत में भारी गिरावट केंद्र सरकार के लिये अपने SPR भंडार को बढ़ाने और ऊर्जा सुरक्षा की दिशा में अवसर प्रस्तुत करती है। भारत को वर्तमान समय में तेल की कीमतों का लाभ उठाना चाहिये तथा भारत की ऊर्जा सुरक्षा की दिशा में तेल खरीदने और अपनी ‘सामरिक पेट्रोलियम भंडार’ (Strategic Petroleum Reserves- SPR) को भरने के सुअवसर के रूप में देखना चाहिये।

Saturday, May 2, 2020

नीली अर्थव्यवस्था Blue Economy

नीली अर्थव्यवस्था:----------
भारत की तटीय सीमा काफी लंबी है, साथ ही भारत हिंद महासागर में स्थित प्रमुख देश है जिसमें पूर्व में बंगाल की खाड़ी तथा पश्चिम में अरब सागर स्थित है। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए बजट में महासागरों के धारणीय उपयोग पर ध्यान दिया गया है। मौजूदा समय में महासागरों के आर्थिक उपयोग के लिये ब्लू इकॉनमी अथवा नीली अर्थव्यवस्था शब्द का उपयोग किया जाता है। नीली अर्थव्यवस्था का विकास न केवल जल निमग्न संसाधनों का दोहन करते हुए बल्कि विशेषकर स्थल पर अवसरों की सीमितता के बीच महासागरों में अवसंरचना विस्तार के लिये एक आधार के रूप में इसे विकसित किया जा सकता है इससे सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि होगी। साथ ही यह राष्ट्र-निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन भी कर सकता है।
नीली अर्थव्यवस्था (Blue Economy)----
महासागर विश्व के सबसे बड़े पारिस्थितिकी तंत्र हैं, साथ ही ये पृथ्वी के तीन-चौथाई हिस्से में फैले हुए हैं। महासागर वैश्विक GDP में 5 प्रतिशत का योगदान देते हैं तथा 350 मिलियन लोगों को महासागरों से जीविका प्राप्त होती है। इस संदर्भ में ये क्षेत्र जलवायु परिवर्तन, आजीविका, वाणिज्य तथा सुरक्षा से संबंधित विभिन्न संभावनाएँ एवं चुनौतियाँ उत्पन्न करते हैं।
विश्व बैंक के अनुसार, महासागरों के संसाधनों का उपयोग जब आर्थिक विकास, आजीविका तथा रोज़गार एवं महासागरीय पारिस्थितिक तंत्र के स्वास्थ्य को ध्यान में रखकर किया जाता है तो वह नीली अर्थव्यवस्था (Blue Economy) के अंतर्गत आता है। नीली अर्थव्यवस्था को प्रायः मरीन अर्थव्यवस्था, तटीय अर्थव्यवस्था एवं महासागरीय अर्थव्यवस्था के नाम से भी पुकारा जाता है।
भारत के लिये नीली अर्थव्यवस्था के क्षेत्र----
1.मत्स्य कृषि : ध्यातव्य है कि भारत की तटीय लंबाई लगभग 8000 किमी. है, इसके कारण भारत में मछली उत्पादन तटीय क्षेत्रों में रोज़गारके रूप में विकसित है। भारत के लगभग 1.5 मिलियन लोग इस क्षेत्र से सीधे तौर पर रोज़गारप्राप्त करते हैं, साथ ही कृषि क्षेत्र में मछली उत्पादन 6 प्रतिशत का योगदान देता है। भारत की तटीय आबादी के लिये भोजन एवं पोषण के मुख्य साधन के रूप में मछली का ही उपयोग किया जाता है। भारत में यदि इस क्षेत्र को और अधिक प्रोत्साहन दिया जाता है तो यह भारत के पोषण स्तर को सुधारने का एक सस्ता स्रोत हो सकता है। इसके अतिरिक्त यह निर्यात के रूप में आर्थिक लाभ भी उत्पन्न कर सकता है। ज्ञात हो कि विश्व की GDP में यह क्षेत्र 270 बिलियन डॉलर का योगदान देता है।
2.जलीय कृषि: वर्तमान में भारत की जनसंख्या लगभग 130 करोड़ के करीब है। आने वाले समय में भारत के लिये खाद्य सुरक्षा एक प्रमुख चुनौती बन कर उभर सकती है। सिर्फ अनाज के माध्यम से सभी की भोजन की जरूरत को पूरा करना पोषण के दृष्टिकोण से संभव नहीं हो सकता है। इसके लिये महासागर महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। वर्तमान में विश्व में उपभोग किये जाने वाली कुल मछलियों में से 58 प्रतिशत जलीय कृषि से उत्पादित की जाती हैं। जलीय कृषि के अंतर्गत मछली के अतिरिक्त विभिन्न प्रकार के जलीय जीवों एवं वनस्पतियों को नियंत्रित पर्यावरण में विकसित किया जाता है। इससे इनकी उत्पादकता एवं उपयोगिता में वृद्धि होती है।
3.मरीन जैव-प्रौद्योगिकी एवं जैव संभावना (Marine Biotechnology and Bioprospecting): ध्यातव्य है कि सागर पृथ्वी के तीन-चौथाई क्षेत्र में फैले हुए हैं साथ ही सागरों में विश्व की सबसे अधिक जैव-विविधता विद्यमान है। समुद्रों की जैव-विविधता का विभिन्न क्षेत्रों जैसे- दवाओं, भोजन सामग्री, सजावट आदि के रूप में उपयोग किया जाता है। भारत समुद्रों में जैव संभावना को तलाश कर अपने आर्थिक लाभ में वृद्धि कर सकता है।
4.अलवणीकरण के माध्यम से ताज़े पानी की प्राप्ति: SIDS (Small Island Developing State) देश जैसे मालदीव में प्राकृतिक ताज़े पानी के स्रोतों की नितांत कमी होती है। ऐसे देश समुद्री खारे पानी को अलवणीकरण प्रक्रिया द्वारा ताज़े जल में परिवर्तित कर उपयोग करते हैं। भारत के भी कई तटीय क्षेत्र ऐसे हैं जहाँ जल स्रोतों की कमी हैं, वर्तमान में चेन्नई में जल की कमी ने ऐसे प्रयासों की ओर विचार करने को प्रेरित किया है। हालाँकि इसकी कुछ पर्यावरणीय चिंताएँ भी हैं इन्हें दूर कर इस तकनीक के उपयोग को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
5.नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन: महासागर के तटीय क्षेत्रों का नवीकरणीय ऊर्जा के स्रोत के रूप में उपयोग किया जा सकता है। INDC (Intended Nationally Determined Contributions) में भारत ने वर्ष 2030 तक कार्बन उत्सर्जन की तीव्रता को 33-35 प्रतिशत तक कम करने की बात कही है। इस संदर्भ में भारत को अपने नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों में वृद्धि करने की आवश्यकता है। महासागर न सिर्फ ज्वारीय एवं थर्मल बल्कि अपतटीय पवन ऊर्जा के उत्पादन में भी महती भूमिका निभाने की क्षमता रखते हैं। भारत ऐसे क्षेत्रों को प्रोत्साहित कर अपनी नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता में वृद्धि कर सकता है।
6.मेरीटाइम परिवहन, बंदरगाह सेवाएँ आदि: 80 प्रतिशत (मात्रा) वैश्विक व्यापार समुद्री मार्गों द्वारा संपन्न होता है। यह मात्रा भारत जैसे विकासशील देशों में और भी अधिक है। भारत का मात्रा के संदर्भ में 95 प्रतिशत तथा मूल्य के रूप में 70 प्रतिशत व्यापार समुद्री मार्गों से होता है। इस तथ्य के अनुसार भारत अपने बंदरगाह की क्षमता में वृद्धि कर रहा है। साथ ही सागरमाला परियोजना द्वारा बंदरगाहों को अन्य क्षेत्रों से जोड़ने का भी प्रयास किया जा रहा है। भारत इस क्षेत्र में और अधिक क्षमता हासिल करना चाहता है क्योंकि आने वाले समय में जैसे-जैसे भारत की अर्थव्यवस्था का आकार बढ़ेगा वैसे-वैसे ही व्यापार का आकार भी बढ़ेगा। इसके अतिरिक्त चीन के बंदरगाहों की क्षमता भारत से कहीं अधिक है जिसका लाभ उसे आर्थिक विकास में हुआ है। भारत भी नीली अर्थव्यवस्था को बल देकर बंदरगाह एवं इससे संबंधित अवसंरचना के विकास को बढ़ावा दे सकता है।
7.पर्यटन: भारत एवं विश्व में पर्यटन का तेजी से विकास हो रहा है। विश्व में 9 प्रतिशत रोज़गारसिर्फ पर्यटन क्षेत्र से आता है, साथ ही विश्व की GDP में भी पर्यटन 9.8 प्रतिशत (वर्ष 2015) योगदान करता है। भारत में भी पर्यटन क्षेत्र तेजी से विकास हो रहा है किंतु अभी भी भारत अपनी जैव विविधता का उपयोग पर्यटन के दृष्टिकोण से नहीं कर सका है। भारत में कई तट एवं द्वीप (अंडमान निकोबार द्वीप समूह, लक्षद्वीप, केरल, गोवा, गुजरात आदि) ऐसे हैं जिसका विकास समुद्री पर्यटन के दृष्टिकोण से किया जा सकता है। विभिन्न देश जैसे-मालदीव, मॉरीशसआदि में समुद्री पर्यटन का अच्छा विकास हुआ है। यह क्षेत्र न सिर्फ अधिक रोज़गार सृजन की क्षमता रखता है बल्कि विदेशी मुद्रा अंतरप्रवाह (Inflow) की दृष्टि से भी महत्त्वपूर्ण है। ध्यातव्य है कि भारत का आयात निर्यात की अपेक्षा अधिक है। इस दृष्टिकोण से पर्यटन विदेशी मुद्रा का अच्छा साधन उपलब्ध करा सकता है।
8.कार्बन प्रथक्करण में उपयोगी (ब्लू कार्बन): विश्व जलवायु परिवर्तन के खतरों से जूझ रहा है तथा कार्बन उत्सर्जन को कम करने के विभिन्न प्रयासों पर कार्य कर रहा है। समुद्री एवं तटीय पारिस्थितिकी तंत्र द्वारा अवशोषित किये जाने वाले कार्बन को नीले कार्बन अथवा ब्लू कार्बन की संज्ञा दी जाती है। यह अवशोषण जीवभार और अवसाद के रूप में मैंग्रोव, दलदलीय क्षेत्रों, समुद्री घास तथा शैवालों द्वारा किया जाता है। महासागरों की कार्बन अवशोषण क्षमता भूमि पर स्थित पारितंत्र के मुकाबले पाँच गुना अधिक होती है। यदि सागरों का उपयोग जलवायु शमन में किया जाता है तो यह जलवायु परिवर्तन से निपटने में मददगार हो सकते हैं।

Wednesday, April 29, 2020

दर्रा


महत्वपूर्ण दर्रा की सूची
1. डुंगरी ला दर्रा - डुंगरी ला दर्रे या माना दर्रा उच्च ऊंचाई पहाड़ के पास है और उत्तराखंड में जांस्कर पर्वत श्रृंखला की नंदा देवी बायोस्फीयर रिजर्व में स्थित है। यह भारत और तिब्बत को जोड़ता है।
2. चांग ला दर्रे - चांग ला दर्रे 5300 मीटर से अधिक की ऊंचाई पर स्थित है और दुनिया में सबसे ज्यादा वाहन योग्य सड़क जो पैंगांग झील क्षेत्र के लिए सिंधु घाटी को जोड़ता है में से एक है। चांगथंग पठार इसकी उच्च ऊंचाई विशाल झीलों और महान हिमालय के विशाल हाइलैंड्स के लिए जाना जाता है।
3. Debsa दर्रा - Debsa दर्रा हिमालय में 5360 मीटर से अधिक की ऊंचाई पर स्थित है। यह ग्रेटर हिमालय में एक उच्च पहाड़ के पास है और हिमाचल प्रदेश के कुल्लू और स्पीति जिलों को जोड़ता है। स्पीति घाटी तिब्बत और भारत के बीच एक रेगिस्तान पहाड़ भूमि है।
4. काराकोरम दर्रा - काराकोरम दर्रे काराकोरम रेंज में भारत और चीन के बीच 4,693 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। काराकोरम दर्रा और लेह के बीच सबसे पुराने Yarkant मार्ग है और काराकोरम पर्वत श्रृंखला की सबसे ऊंची पास है। सियाचिन ग्लेशियर पूर्वी काराकोरम रेंज में स्थित है।
5. सेला दर्रा - जमे हुए सेला दर्रा अरुणाचल प्रदेश के तवांग जिले में 4170 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। सेला दर्रा तेजपुर और गुवाहाटी के माध्यम से भारत के बाकी हिस्सों से तवांग से जोड़ता है। यह सर्दियों में भारी बर्फबारी प्राप्त करता है, लेकिन रहने के साल भर में खुल जाता है। यह तवांग और बौद्ध तवांग मठ को ही प्रवेश द्वार है।
6. खार्दूंग ला दर्रा - खार्दूंग ला दर्रा Bomdi ला 5,800 मी। खार्दूंग ला दर्रा उच्चतम मोटर योग्य पास और देश में सबसे ज्यादा वाहन योग्य सड़क से एक है। खार्दूंग ला दर्रे जम्मू एवं कश्मीर के लद्दाख क्षेत्र के लेह के निकट स्थित है।
7. बनिहाल दर्रे (जवाहर सुरंग) - बनिहाल दर्रे पीर पंजाल रेंज में 2,850 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। बनिहाल दर्रे श्रीनगर जम्मू से जोड़ता है। पास सर्दियों के मौसम के दौरान बर्फ के साथ कवर रहता है। जवाहर सुरंग 1956 में उद्घाटन किया गया।
8. Bomdi ला दर्रा - Bomdi ला अरुणाचल प्रदेश में ग्रेटर हिमालय में भूटान के पूर्व में 2600 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यह ल्हासा, तिब्बत के साथ अरुणाचल प्रदेश से जोड़ता है।
9. दिफू दर्रा - दिफू दर्रा 4587 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। दिफू दर्रा के भारत, चीन और बर्मा की सीमाओं के त्रि-बिंदु पर एक पहाड़ के पास है। यह भारत और म्यांमार के बीच एक पारंपरिक पास जो परिवहन और व्यापार के लिए साल भर खुला रहता है। दिफू दर्रा भी पूर्वी असम के लिए एक रणनीतिक दृष्टिकोण है।
10 ख़ुंजराब दर्रा - ख़ुंजराब दर्रा 4,693 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। चीन के झिंजियांग क्षेत्र के दक्षिण पश्चिम सीमा पर नगर जिला - एक ऊंचे पहाड़ पाकिस्तान के गिलगित-बाल्टिस्तान Hunza के उत्तरी सीमा पर एक रणनीतिक स्थिति में काराकोरम पर्वत में पारित है।
11. जेलेप ला दर्रा - जेलेप ला दर्रा 4,267 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। इस पास ल्हासा, तिब्बत के साथ सिक्किम से जोड़ता है।
12. लिपुलेख ला - लिपुलेख ला 5340 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यह तिब्बत के साथ भारत में पिथौरागढ़ जिले में उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र से जोड़ता है।
13. नाथू ला दर्रा - नाथू ला दर्रा हिमालय में एक पहाड़ के पास है और 4310 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यह चीन के साथ सिक्किम (भारत) से जोड़ता है। यह भारत और चीन के बीच तीन खुले व्यापार सीमा चौकियों में से एक है, अन्य दो हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में लिपुलेख में Shipkila हैं।
14. पीर पंजाल दर्रा - पीर पंजाल पास एक ऊंचे पहाड़ पर मनाली से 51 किलोमीटर दूर हिमालय के पूर्वी पीर पंजाल रेंज पर गुजरती है। यह हिमाचल प्रदेश, भारत के लाहौल और स्पीति घाटियों के साथ कुल्लू घाटी को जोड़ता है। मनाली-लेह राजमार्ग, एनएच 21 का एक हिस्सा है, रोहतांग दर्रा transverses।
15. शिपकी ला दर्रा - शिपकी ला एक पहाड़ के पास और भारत-तिब्बत सीमा पर सीमा चौकी है। यह किन्नौर जिले में चीन की पीपुल्स गणराज्य में हिमाचल प्रदेश, भारत और तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र के राज्य में स्थित है। सतलुज नदी के इस पास के माध्यम से (तिब्बत) से भारत में प्रवेश करती है। यह प्राचीन सिल्क रोड की एक शाखा है। यह चीन के साथ व्यापार के लिए एक सीमा चौकी है।
16. ज़ोजिला दर्रा - ज़ोजिला दर्रा 3,950 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यह Srinaga जोड़ता
कारगिल और लेह के साथ आर। ज़ोजिला दर्रा सोनमर्ग से 9 किमी दूर है और लद्दाख और कश्मीर के बीच एक महत्वपूर्ण कड़ी है।

पेरिस समझौता(paris-agreement)

पेरिस समझौता-------
जब भी कोई 'जलवायु परिवर्तन' या 'ग्लोबल वार्मिंग' के बारे में बोलता है तो 'पेरिस समझौते' का उल्लेख किया जाता है
पेरिस समझौता क्या है?
संक्षेप में, जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए पेरिस समझौता एक अंतर्राष्ट्रीय समझौता है ।
30 नवंबर से 11 दिसंबर 2015 तक, 195 देशों की सरकारें पेरिस, फ्रांस में एकत्रित हुईं और जलवायु परिवर्तन पर संभावित नए वैश्विक समझौते पर चर्चा की, जिसका उद्देश्य वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करना है और इस प्रकार खतरनाक जलवायु परिवर्तन के खतरे को कम करना है।
पेरिस समझौते के उद्देश्य---------
-जैसा कि दुनिया भर के देशों ने माना कि जलवायु परिवर्तन एक वास्तविकता है, वे जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए एक ऐतिहासिक समझौते पर हस्ताक्षर करने के लिए एक साथ आए - पेरिस समझौता। पेरिस समझौते का उद्देश्य निम्नानुसार है:
-पूर्व-औद्योगिक स्तर से 2 डिग्री सेल्सियस नीचे इस सदी में वैश्विक तापमान में अच्छी वृद्धि हुई है।
-तापमान वृद्धि को सीमित करने के लिए पीछा करने का प्रयास 1.5 डिग्री सेल्सियस तक भी आगे बढ़ जाता है ।
-जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने के लिए देशों की क्षमता को मजबूत करना
पेरिस समझौता: ध्यान देने योग्य बातें
-फ्रेंच में, पेरिस समझौते को L'accord de Paris के रूप में जाना जाता है।
-पेरिस समझौते का मुख्य उद्देश्य वैश्विक तापमान को "अच्छी तरह से नीचे" 2.0C (3.6F) पूर्व-औद्योगिक समय से ऊपर रखना और 1.5C तक "उन्हें और भी अधिक सीमित" करने का प्रयास है।
-पेरिस समझौते ने मानव गतिविधि द्वारा उत्सर्जित ग्रीनहाउस गैसों की मात्रा को उसी स्तर तक सीमित करने की बात की है, जो पेड़, मिट्टी और महासागरों को स्वाभाविक रूप से अवशोषित कर सकते हैं, जो 2050 और 2100 के बीच किसी बिंदु पर शुरू होता है।
-इसमें हर पांच साल में उत्सर्जन में कटौती के लिए प्रत्येक देश के योगदान की समीक्षा करने की आवश्यकता का उल्लेख किया गया है ताकि वे चुनौती के लिए तैयार हों।
-अमीर देशों को जलवायु परिवर्तन और नवीकरणीय ऊर्जा पर स्विच करने के लिए "जलवायु वित्त" प्रदान करके गरीब देशों की मदद करनी चाहिए।
-पेरिस समझौते में अधिकांश अंतरराष्ट्रीय पर्यावरण कानून संधियों के विपरीत एक 'नीचे ऊपर' संरचना है जो 'शीर्ष नीचे' हैं।
-समझौता कुछ आवश्यकताओं जैसे रिपोर्टिंग आवश्यकताओं के लिए बाध्यकारी है, जबकि सौदे के अन्य पहलुओं को छोड़कर जैसे कि किसी भी व्यक्ति के लिए गैर-बाध्यकारी के रूप में उत्सर्जन लक्ष्य की स्थापना।

पंचवर्षीय योजना five year plan

भारत का योजना आयोग और पंचवर्षीय योजना---------
15 मार्च 1950 को स्थापित योजना आयोग एक सरकारी निकाय है, जो देश की आर्थिक व सामाजिक विकास के लिए योजना बनाया करती है। योजना आयोग का मूल उद्देश्य मानवीय व भौतिक संसाधनों का उपयोग कर उत्पादकता को बढ़ाकर रोजगार के अधिक से अधिक अवसर उपलब्ध कराना था। योजना आयोग एक सलाहकार निकाय के रूप में संचालित थी। इसका नेतृत्व प्रधान मंत्री करते थे और आमतौर पर पूर्णकालिक उपाध्यक्ष हुआ करता था।
भारत का योजना आयोग की आवश्यकता----
-योजना आयोग ने देश और आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
-योजना आयोग ने देश की भौतिक पूंजी और मानव संसाधनों का आकलन करने और ऐसे संसाधनों को बढ़ाने की संभावना की जांच करने की ज़िम्मेदारी संभाली।
-योजना आयोग ने देश के संसाधनों के सबसे प्रभावी और संतुलित उपयोग के लिए योजना बनायी, उपलब्ध और संभावित संसाधनों दोनों के साथ।
पंचवर्षीय योजना---
1947 की आजादी के बाद, भारतीय अर्थव्यवस्था के पुनर्निर्माण के अलावा अन्य विकल्प नहीं बचा था। इसलिए राजनीतिक नेताओं को देश के तत्कालीन हालात के अनुसार अर्थव्यवस्था का चयन करना था व आर्थिक नियोजन भी तैयार करना था। जिससे पंचवर्षीय योजनाओं की शुरूआत हुई।

पांच साल की योजनाओं की धारणा के बाद, भारत ने 12 पंचवर्षीय योजनाएं जारी की हैं। 12 वीं पंचवर्षीय योजना आखिरी थी क्योंकि
1.प्रथम पंचवर्षीय योजना (1951-56):
-यह योजना हैरोड-डोमर मॉडल पर आधारित थी।
-इसने कृषि, प्रोडक्शंस, सिंचाई, मूल्य स्थिरता, बिजली और परिवहन के सुधार पर जोर दिया।
-यह योजना सफल साबित हुई क्योंकि इस योजना के कारण कृषि उत्पादन में 3.6% की दर से बढ़ोत्तरी हुई थी।
-भाखड़ा-नंगल, हीराकुंड और मेट्टूर बांध की प्रमुख बांध परियोजनाएं इस योजना अवधि के दौरान शुरू की गई थीं।
-इस योजना अवधि के अंत तक, 1956 में, पांच भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) भी शुरू किए गए थे।
-सामुदायिक विकास परियोजना शुरू की गई थी।
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2.द्वितीय पंचवर्षीय योजना ( 1956-61):
-यह योजना ‘महालनोबिस मॉडल’ पर आधारित थी।
इस योजना ने औद्योगिक उत्पादों और तेजी से औद्योगिकीरण के घरेलू उत्पादन पर जोर दिया।
-भिलाई, दुर्गापुर और राउरकेला में इस्पात संयंत्र की शुरूआत इस योजना के तहत ही की गयी थी।
-इस योजना की लक्षित विकास दर 4.5% और वास्तविक विकास दर 4.27% थी।
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3.तीसरी पंचवर्षीय योजना (1961-66) :
तीसरी पंचवर्षीय योजना ने कृषि और उद्योग की वृद्धि पर जोर दिया गया।
-इसे ‘गाडगिल योजना’ के रूप से भी जाना जाता है।
-इस योजना का उद्देश्य राष्ट्रीय आय व कृषि उत्पादन में 30% तक की वृद्धि करना था।
-लेकिन 1962 में चीन व 1965 में पाकिस्तान के साथ युद्ध तथा खराब मौसम के कारण भारत अपना यह लक्ष्य हासिल नहीं कर पाया था।
-इस योजना की लक्षित विकास दर 5.6% थी लेकिन वास्तविक वृद्धि दर 2.4% थी।
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प्लान हॉलिडे (1966-69):
-तीसरी योजना की विफलता व भारत पाकिस्तान के बीच हुए बड़े युद्ध के कारण सरकार ‘प्लान हॉलिडे’ घोषित करने के लिए मजबूर थी
-इस अवधि के दौरान तीन वार्षिक योजनाएं तैयार की गई।
-कृषि, इसकी संबद्ध गतिविधियों और औद्योगिक क्षेत्र को समान प्राथमिकता दी गई थी।
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4.चौथी पंचवर्षीय योजना (1969-74):
-इस योजना ने कृषि विकास और भारत में हरितक्रांति पर जोर दिया।
-14 भारतीय बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया।
-इस योजना की लक्ष्य वृद्धि दर 5.6%थी लेकिन वास्तविक वृद्धि दर 3.3 % थी।.
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5.पांचवीं पंचवर्षीय योजना (1974-78):
-इस योजना के तहत के रोजगार को बढ़ावा, मुद्रास्फीति की जांच, गरीबी उन्मूलन (गरीबी हटाओ) और न्याय पर ज़ोर दिया।
-योजना का मसौदा प्रमुख राजनयिक ‘डी.पी.धर’ द्वारा तैयार किया गया था।
-यह कृषि उत्पादन और रक्षा में आत्मनिर्भरता पर केंद्रित था।
-भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्रणाली की शुरूआत की गयी।
-‘न्यूनतम आवश्यकता कार्यक्रम’ लॉन्च किया गया।
-जनता पार्टी के सरकार में आते ही इस योजना को चौथे वर्ष में ही समाप्त कर दिया गया यानि कि 1978 में।
-इसकी लक्षित वृद्धि दर 4.4% थी और वास्तविक वृद्धि 4.4% थी।
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रोलिंग प्लान (1978-80):
-जनता पार्टी सरकार ने पांचवीं पंचवर्षीय योजना को खारिज कर दिया और नई छठी पंचवर्षीययोजना (1978-1983) पेश की। इसके बाद राष्ट्रीय कांग्रेस सरकार ने 1980 में सत्ता में आने के बाद इस योजना को फिर से खारिज कर दिया और एक नई छठी योजना बनाई।
-पहली वाली योजना रोलिंग योजना के नाम से जानी जाती थी।
-रोलिंग प्लान की अवधारणा ‘गुन्नार मिर्डल’ द्वारा बनाई गयी थी।
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6.छठी पंचवर्षीय योजना (1980-85):
-इस पंचवर्षीय योजना से आर्थिक उदारीकरण की शुरूआत हुई।
-यह योजना बुनियादी ढांचे में बदलाव व कृषि पर समान रूप से केंद्रित थी।
-छठी पंचवर्षीय भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक बड़ी सफलता थी।
-इसकी लक्षित वृद्धि दर 5.2% थी और वास्ततिक वृद्धि दर 5.4% थी।
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7.सातवीं पंचवर्षीय योजना (1985-90):
-इस पंचवर्षीय योजना का मुख्य उद्देश्य आर्थिक व अनाज की उत्पादकता में वृद्धि के साथ-साथ रोजगार के अवसर पैदा करना था।
-इस योजना के तहत 1989 में जवाहर रोजगार योजना लॉन्च की गयी।
-यह योजना सफल रही तथा इसका लक्षित वृद्धि दर 5.0% और वास्तविक वृद्धि दर 6.01% थी।
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वार्षिक योजनाएं (1989-91और 1991-92):
-राजनीतिक अस्थिरता के कारण इस अवधि के दौरान कोई पांच वर्षीय योजना लागू नहीं की गयी थी।
-1990 और 1992 के बीच अवधि के लिए सिर्फ वार्षिक योजनाएं ही लागू की गयी थी।
-1991 में भारत को विदेशी मुद्रा भंडार के संकट का सामना करना पड़ा, उस वक्त केवल 1 अरब अमेरिकी डॉलर के भंडार देश के पास बचे थे। उस समय डॉ.मनोमहन सिंह ने मुक्त बाजार सुधार को लॉन्च किया, जिसने लगभग राष्ट्र को दिवालिया होने के कगार से वापस ले आया। यहीं से भारत में निजीकरण और उदारीकरण की शुरूआत हुई।
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8.आठवीं पंचवर्षीय योजना (1992-97):
-इस योजना ने उद्योगों के आधुनिकीरण की दिशा में काम किया।
-इस योजना का मुख्य उद्देश्य जनसंख्या वृद्धि पर नियंत्रण, गरीबी में कमी, रोजगार के अवसर पैदा करना व बुनियादी ढांचे को मजबूत करना था।
-इस योजना की लक्षित वृद्धि दर 5.6% थी और वास्तविक वृद्धि दर 6.8% थी।
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9.नौवीं पंचवर्षीय योजना (1997-2002):
-इस पंचवर्षीय योजना ने पर्याप्त रोजगार के अवसर पैदा करने, गरीबी कम करने, कृषि उत्पादकता में बढ़ोत्तरी के साथ-साथ ग्रामीण विकास को प्राथमिकता दी।
-इसके अलावा न्याय व समानता के साथ विकास पर भी जोर दिया गया।
-स्थिर कीमतों के माध्यम से अर्थव्यवस्था की विकास दर में तेजी लाई गयी।
-सभी लोगों को भोजन व पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करना।
जनसंख्या पर नियंत्रण करना।
-इस योजना की लक्षित वृद्धि दर 6.5% व वास्तविक वृद्धि दर 5.40% थी।
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10.दसवी पंचवर्षीय योजना (2002-07):
-दसवीं पंचवर्षीय योजना (2002- 07) में जीडीपी वृद्धि दर 7.7 प्रतिशत रही. इस योजना का उद्देश्य ‘देश में गरीबी और बेरोजगारी समाप्त करना’ तथा ‘अगले दस वर्षों में प्रति व्यक्ति आय दोगुनी करना’ था.
-योजना के दौरान प्रतिवर्ष 7-5 अरब डालर के प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का लक्ष्य रखा गया. योजना अवधि में पांच करोड़ रोजगार अवसर सृजन सहित साक्षरता, शिशु मृत्य-दर, वन विकास के बड़े लक्ष्‍य रखे गए.
-दसवीं पंचवर्षीय योजना को इस लिहाज से भी उल्‍लेखनीय माना जा सकता है कि भारत उच्‍च (सात प्रतिशत से अधिक) वृद्धि दर यानी ग्रोथ रेट की पटरी पर आ गया. इस योजना में 7.7 प्रतिशत की औसत सालाना वृद्धि दर अब तक किसी योजना में ‘सर्वोच्च वृद्धि दर’ थी.
-लक्षित वृद्धि दर 8.1% थी और वास्तविक वृद्धि दर 7.3% थी।
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11.ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना (2007-12):
-इस योजना का मुख्य लक्ष्य सकल घरेलू उत्पाद वृद्धि दर को 8% से बढ़ाकर 10% तक करना था तथा 12 वीं योजना में इसे 10% बनाए रखना था ताकि 2016 तक प्रति व्यक्ति आय दोगुनी हो सके।
-राजीव आर्ययोगी स्वास्थ्य योजना शुरू की गई।
-70 लाख नए रोजगार के नए अवसर पैदा किए गए।
-शिक्षित बेरोजगारी को 5% से कम करना था।
-5% से कम शिक्षित बेरोजगारी को कम करना।
5% से अधिक वनावरण में वृद्धि।
-0 से 6 वर्ष की आयु तक के बच्चों के लिंगानुपात की दर को 2011 तक 935 करना और इसे 2016-17 तक इजाफा करते हुए 950 तक पहुँचाना।
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12.बारहवीं पंचवर्षीय योजना (2012-17):
-इस पंचवर्षीय योजना का उद्देश्य तेजी से, अधिक समावेशी और सतत विकास के उद्देश्य के साथ 8.2% की वृद्धि हासिल करना था।
-इसका उद्देश्य कृषि में 4 प्रतिशत की वृद्धि हासिल करना और गरीबी को 10 प्रतिशत तक कम करना करना था।
-स्वास्थ्य, शिक्षा और कौशल विकास, पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधन और आधारभूत संरचना विकास इस योजना का मुख्य केंद्र थे।

वायुमंडल(Atmosphere)

वायुमंडल क्या है एवं वायुमंडल की संरचना:--
हमारी पृथ्वी के चारों ओर वायु फैली हुई है, जिसे वायुमंडल (Atmosphere) कहते हैं। पृथ्वी पर समस्त प्राणी व जीव जंतु वायुमंडल पर ही निर्भर है। जैसे – पेड़ हमें पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन देते हैं और कार्बन डाइऑक्साइड ग्रहण करते हैं और वायुमंडल ही सूर्य की हानिकारक किरणों के प्रभाव से हमारी रक्षा करता है अगर वायुमंडल (Atmosphere) हमारी रक्षा न करें तो हम दिन के समय सूर्य की गर्मी से जलते हैं एवं रात्रि में ठंड सकते हैं, ये वायुमण्डल (Atmosphere) ही है जो पृथ्वी के तापमान को रहने योग्य बनाता है।
वायुमंडल का संघटन:----
वायु उपयोग हम सांस लेने के लिए करते हैं, लेकिन इस वायु में अनेक गैसों का मिश्रण होता है। जैसे – नाइट्रोजन तथा ऑक्सीजन ये दो गैसों का वायुमंडल में अधिक मात्रा में पायी जाती है तथा कम मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड, हीलियम, ओजोन, आर्गन एवं हाइड्रोजन पाई जाती है। वायु के विभिन्न संघटनों के प्रतिशत
👉नाइट्रोजन 78 %
👉ऑक्सीजन 21 %
👉कार्बन डाइऑक्साइड 0.03 %
👉आर्गन 0.93 %
👉अन्य सभी 0.04 %
वायुमंडल की संरचना
वायुमंडल पॉच परतों में विभाजित है, जो कि पृथ्वी की सतह से आरंभ होती हैं – क्षोभ मंडल, समताप मंडल, मध्य मंडल, ब्राह्म मंडल एवं बर्हिमण्डल।
क्षोभ मंडल :- हम इसी मंडल में मौजूद वायु में सांस लेते हैं, मौसम की लगभग सभी घटनाएं जैसे वर्षा, कोहरा एवं ओला वर्षण इसी परत में होती हैं। यह परत वायुमंडल की सबसे महत्वपूर्ण परत है, इसकी औसत ऊंचाई 13 किलोमीटर है।
समताप मंडल :- क्षोभ मंडल की ऊपरी परत समताप मंडल है, जो लगभग 50 किलोमीटर की ऊंचाई तक फैली है। समताप मंडल में ही ओजोन परत होती है, जो सूर्य से आने वाली हानिकारक गैसों से हमारी रक्षा करती है समताप मंडल में ही हवाई जहाज उड़ा करते हैं।
मध्य मंडल :- ये परत समताप मंडल के ऊपर पाई जाती है, यह वायु मंडल की तीसरी परत है। इसकी ऊंचाई लगभग 80 किलोमीटर की ऊंचाई तक है। इसी परत में अंतरिक्ष में प्रवेश करने वाले उल्कापिंड आने पर जल जाते हैं।
ब्राह्म मंडल :- आयन मंडल ब्राह्म मंडल का ही एक भाग है, यह लगभग 80 से 400 किलोमीटर तक फैली है। रेडियो संचार वास्तव में पृथ्वी से प्रसारित तरंगे इसी परत पुन: पृथ्वी पर परावर्तित होती हैं। ब्राह्म वायुमंडल में ऊंचाई बढ़ने के साथ-साथ तापमान भी अधिक तीव्रता से बढ़ता है।
बर्हिमण्डल :‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌– वायुमण्डल (Atmosphere) की सबसे ऊपरी परत को बर्हिमण्डल कहते हैं, यह वायुमंडल की सबसे पतली परत है। यहीं से हल्की गैसे जैसे – हीलियम एवं हाइड्रोजन अंतरिक्ष में तैरती रहती हैं।