भरतनाट्यम:---------
भरतनाट्यम (Bharatanatyam) भारतीय शास्त्रीय नृत्य का एक प्रमुख रूप है। इस नृत्य शैली का संबंध तमिलनाडु राज्य से है।
भरतनाट्यम (Bharatanatyam) भारतीय शास्त्रीय नृत्य का एक प्रमुख रूप है। इस नृत्य शैली का संबंध तमिलनाडु राज्य से है।
मुख्य बिंदु:-
भरतनाट्यम का उद्भव भरतमुनि द्वारा रचित नाट्यशास्त्र से हुआ है।यह संगीत नाटक अकादमी (Sangeet Natak Akademi) द्वारा मान्यता प्राप्त नृत्य के आठ रूपों में से एक है और यह दक्षिण भारतीय धार्मिक विषयों एवं आध्यात्मिक विचारों विशेष रूप से शैववाद, वैष्णववाद और शक्तिवाद को व्यक्त करता है।
भरतनाट्यम का उद्भव भरतमुनि द्वारा रचित नाट्यशास्त्र से हुआ है।यह संगीत नाटक अकादमी (Sangeet Natak Akademi) द्वारा मान्यता प्राप्त नृत्य के आठ रूपों में से एक है और यह दक्षिण भारतीय धार्मिक विषयों एवं आध्यात्मिक विचारों विशेष रूप से शैववाद, वैष्णववाद और शक्तिवाद को व्यक्त करता है।
दूसरी शताब्दी में भरतनाट्यम का वर्णन प्राचीन तमिल महाकाव्य शिलप्पादिकारम (Shilappatikaram) में मिलता है।
◆◆◆शिलप्पादिकारम:---
शिलप्पादिकारम को 'तमिल साहित्य' के प्रथम महाकाव्य के रूप में जाना जाता है। इस महाकाव्य की रचना चेर वंश के शासक सेनगुट्टुवन (Cenkuttuvan) के भाई इंगालोआदिकल (Ingaloadikal) ने लगभग ईसा की दूसरी-तीसरी शताब्दी में की थी।
शिलप्पादिकारम को 'तमिल साहित्य' के प्रथम महाकाव्य के रूप में जाना जाता है। इस महाकाव्य की रचना चेर वंश के शासक सेनगुट्टुवन (Cenkuttuvan) के भाई इंगालोआदिकल (Ingaloadikal) ने लगभग ईसा की दूसरी-तीसरी शताब्दी में की थी।
इसमें मदुरै नगर का सुन्दर वर्णन किया गया है और इसमें मुख्य चरित्रों में कोवलन एवं कन्नगी दंपत्ति तथा माध्वी नामक नर्तकी हैं।
यह महाकाव्य तीन भागों पुहारक्कांडम, मदरैक्कांडम और वंजिक्कांडम में विभाजित है। इन तीनों भागों में क्रमशः चोल, पाण्ड्य और चेर राज्यों का वर्णन किया गया है।
◆◆◆दक्षिण भारत के मंदिरों में देवदासियों द्वारा शुरू किये गए भरतनाट्यम को 20वीं सदी में रुक्मिणी देवी अरुंडेल और ई. कृष्ण अय्यर के प्रयासों से पर्याप्त सम्मान मिला।
◆◆◆नंदिकेश्वर द्वारा रचित ‘अभिनय दर्पण’ भरतनाट्यम के तकनीकी अध्ययन हेतु एक प्रमुख स्रोत है।
◆◆◆इस नृत्य के संगीत वाद्य मंडल में एक गायक, एक बाँसुरी वादक, एक मृदंगम वादक, एक वीणा वादक और एक करताल वादक होता है।
◆◆◆भरतनाट्यम एकल स्त्री नृत्य है। इसमें कविता पाठ करने वाले व्यक्ति को ‘नडन्न्वनार’ कहते हैं।
◆◆◆नंदिकेश्वर द्वारा रचित ‘अभिनय दर्पण’ भरतनाट्यम के तकनीकी अध्ययन हेतु एक प्रमुख स्रोत है।
◆◆◆इस नृत्य के संगीत वाद्य मंडल में एक गायक, एक बाँसुरी वादक, एक मृदंगम वादक, एक वीणा वादक और एक करताल वादक होता है।
◆◆◆भरतनाट्यम एकल स्त्री नृत्य है। इसमें कविता पाठ करने वाले व्यक्ति को ‘नडन्न्वनार’ कहते हैं।
भरतनाट्यम: नृत्य पदानुक्रम:-----
◆भरतनाट्यम में शारीरिक क्रियाओं को तीन भागों में बाँटा जाता है-समभंग, अभंग और त्रिभंग।
◆इसमें नृत्य क्रम इस प्रकार होता है- आलारिपु (कली का खिलना), जातीस्वरम् (स्वर जुड़ाव), शब्दम् (शब्द और बोल), वर्णम् (शुद्ध नृत्य और अभिनय का जुड़ाव), पदम् (वंदना एवं सरल नृत्य) तथा तिल्लाना (अंतिम अंश विचित्र भंगिमा के साथ)।
◆भरतनाट्यम में शारीरिक क्रियाओं को तीन भागों में बाँटा जाता है-समभंग, अभंग और त्रिभंग।
◆इसमें नृत्य क्रम इस प्रकार होता है- आलारिपु (कली का खिलना), जातीस्वरम् (स्वर जुड़ाव), शब्दम् (शब्द और बोल), वर्णम् (शुद्ध नृत्य और अभिनय का जुड़ाव), पदम् (वंदना एवं सरल नृत्य) तथा तिल्लाना (अंतिम अंश विचित्र भंगिमा के साथ)।
भरतनाट्यम के प्रमुख कलाकार:-----
इस नृत्य के प्रमुख कलाकारों में पद्म सुब्रह्मण्यम्, अलारमेल वल्ली, यामिनी कृष्णमूर्ति, अनिता रत्नम, मृणालिनी साराभाई, मल्लिका साराभाई, मीनाक्षी सुंदरम पिल्लई, सोनल मानसिंह, वैजयंतीमाला, स्वप्न सुंदरी, रोहिंटन कामा, लीला सैमसन, बाला सरस्वती आदि शामिल हैं।
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